लखीशाह बंजारा - जिसने औरंगजेब को चकमा दे दिया!
इतिहास के अंधेरे पन्नों में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो कभी रोशनी में नहीं आए। यह कहानी है एक महान योद्धा। व्यापारी और रणनीतिकार की।

इतिहास के अंधेरे पन्नों में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो कभी रोशनी में नहीं आए। यह कहानी है एक महान योद्धा। व्यापारी और रणनीतिकार की। यह कहानी है लकी शाह बंजारा की। एक ऐसा नाम जिसने अपने जीवन के 99 सालों में इतिहास के वो पन्ने लिखे जो आज भी धुंधले पड़े हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह नाम केवल एक व्यापारी का नहीं बल्कि एक क्रांतिकारी का भी है। चार गांवों का मालिक लाखों बैलों के काफिले का सरदार और मुगल सल्तनत को सामान सप्लाई करने वाला सबसे बड़ा व्यापारी लखीशाह बंजारा लेकिन यह कहानी सिर्फ व्यापार की नहीं बल्कि एक ऐसे आदमी की है जिसने इतिहास को अपने हाथों से लिखा था।
लकी शाह सिर्फ एक व्यापारी नहीं थे बल्कि वह एक दूरदर्शी नेता थे। उनका व्यापार ताशकगंज से लेकर दिल्ली तक फैला था। चार बड़े गांव मलछा, रायसीना, बहार कंबा और नरेला उनके अधीन थे। लेकिन क्या यह सब सिर्फ व्यापार की ताकत से हुआ? नहीं। इसके पीछे थी एक रणनीति, एक जुनून और एक मिशन। लखी शाह ने अपनी सूझबूझ और ताकत से मुगलों के खिलाफ विद्रोह की नीव रखी। वह व्यापार की आड़ में गुरुओं और सिख योद्धाओं को सहायता पहुंचा रहे थे। उनका असली मकसद मुगलों की सत्ता को कमजोर करना था।
लखी शाह बंजारा इतिहास के एक पराक्रमी योद्धा जननायक और महाबलिद दानी के रूप में विख्यात है। उन्हें एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े व्यापारी के रूप में भी जाना जाता है। लाखों लोगों के लोक कल्याणकारी शासक होने के कारण उन्हें लखीराय और लखी शाह की उपाधि दी गई। शाह और राय शब्दों का अर्थ राजा से है। इसीलिए इतिहास में वे लकी शाह बंजारा के नाम से प्रसिद्ध है। उन्हें एशिया का महान सम्राट भी कहा जाता है। लखीशाह बंजारा का जन्म 4 जुलाई 1580 को हुआ था। वे दिल्ली स्थित रायसीना नगरी के नायक थे। रायसीना, मालचा, धौलाकुआ और बाराखं जैसे विशाल क्षेत्र उनके अधीन थे। गौर राजवंशी बंजारा समाज और विशेष रूप से सिख इतिहास में उनके राष्ट्रभक्ति से भरे पराक्रम राष्ट्र निर्माण में दिए गए क्रांतिकारी योगदान और संपूर्ण परिवार के बलिदान का अत्यंत गौरवपूर्ण वर्णन मिलता है। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में उनकी वीरता दर्ज है। उन्होंने लाल किले के निर्माण में योगदान दिया और साथ ही विश्व के सबसे विशाल किलों में से एक लोहगढ़ किला का निर्माण भी उनके राष्ट्रभक्ति और दानशीलता का प्रमाण है। उनका जीवन न केवल शक्ति और पराक्रम का प्रतीक था बल्कि राष्ट्र के लिए सर्वस्व अर्पण करने की भावना का ज्वलंत उदाहरण भी है।
दिल्ली की गलियां खून से रंगी थी। चांदनी चौक के बीचोंबीच जमीन पर पड़ा था। एक पवित्र शरीर गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर 11 नवंबर 1675 एक तारीख जिसने इतिहास में अमृत्व पा लिया औरंगजेब की क्रूरता अपने चरम पर थी उसने सिखों के नौवें गुरु को खुलेआम शहीद कर दिया ताकि डर की एक ऐसी लकीर खींची जाए जिसे कोई पार ना कर सके। लेकिन उसे क्या पता था कि लखीशाह बंजारा नाम का एक तूफान उसके जुल्म को मिटाने के लिए दिल्ली की ओर बढ़ रहा था। अचानक दूर से धूल का एक गुब्बार उठता है।
हवा में रुई के फाहे उड़ने लगते हैं। जैसे किसी ने आसमान से बर्फ गिरा दी हो। मुगल सैनिकों की नजरें धुंध में उलझ जाती हैं। तभी बैलगाड़ियों का एक विशाल काफिला शहर में दाखिल होता है। इन गाड़ियों में सिर्फ व्यापारी नहीं हजारों बंजारे और सिख लड़ा के छुपे थे। हर कोई एक ही मकसद से आया था। गुरु तेग बहादुर के शरीर को सम्मान पूर्वक ले जाना। उन बैलगाड़ियों के बीच घोड़े पर सवार एक 95 साल का बुजुर्ग तेज नजरें सफेद दाढ़ी और चेहरे पर वर्षों का अनुभव लिए चुपचाप काफिले का नेतृत्व कर रहा था यह कोई साधारण इंसान नहीं था यह था बाबा लखीशाह बंजारा जैसे ही हवा में धुंध और रुई का गुब्बार घना हुआ। उसी क्षण लखी शाह बंजारा ने अपने बेटों और सैनिकों के साथ गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर उठा लिया। किसी को भनक तक नहीं लगी। मुगल सेना आंखें मलती रह गई। और बाबा लखी शाह अपने काफिले में गुरु के शरीर को लेकर गायब हो गए। इतिहास का सबसे साहसिक बचाव मिशन। कुछ ही घंटों में वे दिल्ली से कोसों दूर पहुंच चुके थे। उनके घर में गुरु के शरीर को रखा गया और पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन यह आसान नहीं था। औरंगजेब की सेना कहीं भी पहुंच सकती थी।
इसलिए उन्होंने अपने ही घर को आग के हवाले कर दिया। ताकि कोई संदेह ना हो कि वहां कोई अंतिम संस्कार हुआ था। यह घटना सिर्फ एक चमत्कारी बचाव नहीं थी। यह एक क्रांति थी। यह संदेश था कि बंजारा समुदाय सिर्फ व्यापारी नहीं बल्कि राष्ट्र के सच्चे रक्षक भी हैं। और इस घटना ने लखी शाह बंजारा को इतिहास में अमर कर दिया। एक ऐसा वीर जिसने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी औरंगजेब को मात दे दी। लखीर शाह बंजारा सिर्फ एक व्यापारी या योद्धा नहीं बल्कि एक धर्म परायण व्यक्ति भी थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी और गुरु गोविंद सिंह जी का साथ दिया और अपने परिवार को भी इस संघर्ष में झोंक दिया। उनका हर बेटा, हर पोता इस लड़ाई का हिस्सा बना।
हर महान योद्धा की कहानी एक अंत चाहती है। लेकिन कुछ अंत इतिहास को अमर बना जाते हैं। मलचा पैलेस में लखी शाह ने अपनी अंतिम सांस ली। लेकिन उनकी विरासत कभी खत्म नहीं हुई। लखी शाह बंजारा सिर्फ एक नाम नहीं एक परंपरा है। वह एक व्यापारी थे लेकिन सिर्फ व्यापार नहीं किया। वह एक योद्धा थे लेकिन सिर्फ लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने धर्म, संस्कृति और संघर्ष की एक ऐसी विरासत छोड़ी जो आज भी जीवित है बस उसे जानने की जरूरत है।