क्या आप जानते हैं? संत सेवालाल महाराज का असली इतिहास
घोर अंधकार में जब सत्य की ज्योत बुझने लगती है तब एक प्रकाश पुंज जन्म लेता है। एक ऐसा प्रकाश जो सदियों तक चलता रहता है पीढ़ियों को राह दिखाने के लिए। यह केवल एक जन्म नहीं बल्कि एक युग की शुरुआत थी। यह गाथा है एक महापुरुष की, एक संत की, एक योद्धा की। संत सेवालाल महाराज की जिनका नाम आज भी करोड़ों बंजारा समाज के लोगों के दिलों में श्रद्धा भक्ति और आदर का प्रतीक बना हुआ है। 15 फरवरी 1739 स्याह रात के गहरे सन्नाटे में अचानक हवाएं तेज हो उठी। मानो ब्रह्मांड स्वयं किसी दिव्य आत्मा के आगमन की घोषणा कर रहा हो।

घोर अंधकार में जब सत्य की ज्योत बुझने लगती है तब एक प्रकाश पुंज जन्म लेता है। एक ऐसा प्रकाश जो सदियों तक चलता रहता है पीढ़ियों को राह दिखाने के लिए। यह केवल एक जन्म नहीं बल्कि एक युग की शुरुआत थी। यह गाथा है एक महापुरुष की, एक संत की, एक योद्धा की। संत सेवालाल महाराज की जिनका नाम आज भी करोड़ों बंजारा समाज के लोगों के दिलों में श्रद्धा भक्ति और आदर का प्रतीक बना हुआ है। 15 फरवरी 1739 स्याह रात के गहरे सन्नाटे में अचानक हवाएं तेज हो उठी। मानो ब्रह्मांड स्वयं किसी दिव्य आत्मा के आगमन की घोषणा कर रहा हो।
घने जंगलों के बीच बसे एक छोटे से गांव में एक बालक ने पहली बार आंखें खोली। कुछ मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म कर्नाटक के शिवमोगा जिले में हुआ तो कुछ इसे आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से जोड़ते हैं। लेकिन यह स्थान से अधिक महत्व की बात थी उनकी नियति। यह जन्म केवल एक संतान का नहीं था। यह जन्म था एक विचारधारा का, एक क्रांति का, एक उम्मीद का। जैसे ही उस बालक ने पहली बार संसार को निहारा, ऐसा लगा मानो समय की धारा स्वयं नया मोड़ लेने को तत्पर हो। यह समय बंजारा समाज के लिए कठिनाइयों से भरा था। वे सामाजिक भेदभाव, अन्याय और अत्याचारों के शिकार थे।
लेकिन उसी संघर्ष की राख से उठने वाला यह बालक असाधारण था। बालक सेवालाल की आंखों में एक अनोखी चमक थी। मानो वे पहले से ही अपने जीवन के उद्देश्य को जानते हो। अन्य बच्चों की तरह खेल कूद में समय बिताने के बजाय वे वेदों, पुराणों और संत साहित्य का अध्ययन करने लगे। उनके शब्दों में ऐसी शक्ति थी कि जो भी उन्हें सुनता वह उनका अनुयाई बन जाता। वे प्रकृति के समीप रहते थे। जब लोग जंगलों को केवल संसाधन मानते थे तब वे पर्यावरण संरक्षण और संतुलन की बातें कर रहे थे। वे पेड़ों से बातें करते पक्षियों के कलरव को सुनते और लोगों को समझाते कि धरती मां की रक्षा करना भी उतना ही आवश्यक है जितना अपने परिवार की देखभाल करना। जैसे-जैसे वे बड़े हुए उनकी आध्यात्मिक शक्तियां और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता और अधिक स्पष्ट होती गई। वे केवल प्रवचन देने वाले संत नहीं थे। वे एक क्रांतिकारी संत थे। उन्होंने बंजारों को संगठित किया। उन्हें शिक्षा, स्वच्छता और नैतिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी। उनकी वाणी में इतनी शक्ति थी कि लोग खींचे चले आते थे। उनकी बातों में केवल शब्द नहीं होते थे। उनमें एक विद्युत प्रवाह था जो सोई हुई आत्माओं को जगा देता था।
उन्होंने समाज को सिखाया कि आत्मसम्मान सबसे बड़ा धर्म है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि संत सेवालाल महाराज ने केवल आध्यात्मिकता ही नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। मुगलों के अत्याचार चरम पर थे। बंजारा समाज पर जुल्म हो रहे थे। लेकिन कोई उनकी रक्षा करने वाला नहीं था। संत सेवालाल महाराज ने यह बर्दाश्त नहीं किया। उन्होंने बंजारों को एकजुट किया। उन्हें आत्मसम्मान और साहस से खड़ा होना सिखाया। उन्होंने कहा, दुनिया में जीने का अधिकार हर किसी को है। कोई भी किसी के सम्मान को नहीं छीन सकता।
उनकी इस प्रेरणा से बंजारा समाज में एक नई जागृति आई। वे संगठित हुए, संघर्ष किया और अपने आत्मसम्मान को बनाए रखा। संत सेवालाल महाराज केवल धर्मुगुरु ही नहीं बल्कि एक योद्धा संत भी थे। समाज की सेवा में अपना पूरा जीवन अर्पित करने के बाद 4 दिसंबर 1806 को संत सेवालाल महाराज ने अपनी अंतिम यात्रा की ओर कदम बढ़ाए। उनकी अंतिम यात्रा महाराष्ट्र के पंडरपुर से जुड़ी कोहरा देवी में समाप्त हुई। जो आज भी बंजारा समाज की श्रद्धा का केंद्र है। लेकिन क्या कोई संत वास्तव में दुनिया से विदा होता है? नहीं। संत सेवालाल महाराज केवल शरीर रूप में इस धरती को छोड़कर गए। लेकिन उनकी शिक्षाएं, उनके विचार और उनकी प्रेरणाएं आज भी जीवित हैं। उनके विचारों की लौ आज भी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। आज भी जब कोई अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है, जब कोई समाज सेवा में अपना जीवन अर्पित करता है, जब कोई सत्य और परिश्रम की राह पर चलता है, तब संत सेवालाल महाराज की गूंज सुनाई देती है। वे केवल बंजारा समाज के संत नहीं थे। वे पूरे मानव समाज के संत थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची महानता जाति, धर्म और सीमाओं से ऊपर होती है। संत सेवालाल महाराज की शिक्षाएं हमें प्रेरणा देती हैं।
सत्य, परिश्रम और परोपकार के मार्ग पर चलने की। उनका जीवन एक संदेश है कि सच्ची भक्ति वही है जो सेवा और संघर्ष से जुड़ी हो। ऐसा कहा जाता है कि संत सेवालाल महाराज को भविष्य दृष्टा माना जाता था। वे आने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कर सकते थे। उन्होंने समाज को आत्मरक्षा के गुण सिखाए और बंजारों में संगठन की भावना को मजबूत किया। वे ना केवल आध्यात्मिक गुरु थे बल्कि एक कुशल रणनीतिकार भी थे। जिन्होंने समाज को मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान पर जोर दिया। उनके विचारों ने बंजारा समाज में महिलाओं को शक्ति और सम्मान दिलाने का कार्य किया। संत सेवालाल महाराज की शिक्षाओं में स्वच्छता, स्वास्थ्य और नैतिकता का विशेष स्थान था। वे मानते थे कि स्वच्छ तन और स्वच्छ मन से ही सच्ची भक्ति संभव है। जब तक सत्य, साहस और सेवा का दीप जलता रहेगा संत सेवालाल महाराज की गाथा अमर रहेगी।
जय संत सेवालाल महाराज