राठौड़ बंजारा: सात शाखाएँ, एक पहचान

राठौड़ बंजारा: सात शाखाएँ, एक पहचान - जानिए गोर बंजारा समाज की समृद्ध विरासत, राठौड़ वंश की सात शाखाओं और उनकी एकजुट पहचान के बारे में।

राठौड़ बंजारा: सात शाखाएँ, एक पहचान
राठौड़ बंजारा वंश की जड़ें आदि पुरुष लाखन सिंह से जुड़ती हैं, जिन्होंने 13वीं शताब्दी में व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा, अनाज वस्तुओं की ढुलाई और सामाजिक संगठन को सुदृढ़ करने में अग्रणी भूमिका निभाई, उनकी विरासत आज सात प्रमुख शाखाओं और उनकी उपशाखाओं के रूप में जीवित है, जिनका विवरण निम्न है

आल्होत शाखा (5 उपशाखाएँ), युद्ध-कला और साहस का प्रतीक है, जिसका शाखा-चिह्न तलवार-सूरज है, यह मुख्यतः बाड़मेर, जोधपुर, नागौर (राजस्थान) तथा धुले, नंदुरबार (महाराष्ट्र) में फैली है

भीखा शाखा की “भूखिया उपशाखा” (27 उपशाखाएँ), व्यापारिक मार्गों के प्रबंधन में निपुण है, जिसका चिह्न अनाज की कोठी-बैलगाड़ी है, यह खरगोन, बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) और वर्धा, यवतमाल (विदर्भ) में केंद्रित है

धर्मा शाखा की “धरमसौध उपशाखा” (7 उपशाखाएँ), धार्मिक विधियों व सामाजिक आस्थाओं के संरक्षण से जुड़ी है, जिसका प्रतीक त्रिशूल-दीपक है, इसकी उपस्थिति अजमेर, भीलवाड़ा, पाली (राजस्थान) तथा सतारा, सोलापुर (महाराष्ट्र) में है

जौणा शाखा की “मुछाड़ उपशाखा” (52 उपशाखाएँ), सबसे विस्तृत है, जो पारंपरिक न्याय व्यवस्था में प्रमुख है इसका चिह्न मूंछों वाली वीर आकृति व ढाल है, यह राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना तक व्याप्त है

बाणा शाखा की “बाणोत उपशाखा” (13 उपशाखाएँ), घुड़सवारी व यातायात नियंत्रण में विशेषज्ञ है, जिसका प्रतीक तीर-धनुष व अश्व है, इसकी भौगोलिक पहचान जैसलमेर, बांसवाड़ा (राजस्थान), बेलगाम (कर्नाटक) व बीदर (कर्नाटक) में है

मोहना शाखा की “महणावत उपशाखा” (56 उपशाखाएँ), सांस्कृतिक आयोजनों की धुरी है, जिसका चिह्न मोर-नगाड़ा है, यह नागौर, जयपुर (राजस्थान) और बुलढाणा, हिंगोली, उस्मानाबाद (महाराष्ट्र) में सक्रिय है,

नैना शाखा की “नैनावत उपशाखा” (5 उपशाखाएँ), दूतकार्य व सामाजिक वार्ता में निपुण है, जिसका प्रतीक आँख व संदेशवाहक कबूतर है, यह जोधपुर, बीकानेर (राजस्थान) और औरंगाबाद (महाराष्ट्र) तक सीमित है

राठौड़ बंजाराओं की पगड़ी परंपरा इन शाखाओं की सामाजिक पहचान का स्तंभ है, केसरिया पगड़ी योद्धाओं (आल्होत), सफेद व्यापार प्रबंधकों (भूखिया) और लाल-पीत सामान्य सदस्यों के लिए है, शाखानुसार बाँधने की शैलियाँ भिन्न हैं, मोहना शाखा “मयूर शिखा” (मोर की कलगी जैसी), जौणा शाखा “ढाला पग” (सीधी लपेट), तथा विवाह में “फुल्ल पगड़ी” (सोने की कढ़ाई) पहनी जाती है

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में गहरी लाल पगड़ी विद्रोह का प्रतीक थी, प्रत्येक शाखा का वार्षिक मेला, सामूहिक सभा और स्मृति स्थल होता है, जो सांस्कृतिक निरंतरता को जीवित रखते हैं, लाखन सिंह की यह विरासत आज भी वंशावली, पगड़ी के प्रतीकों और शाखाओं के माध्यम से बंजारा समाज को एकसूत्र में बाँधती है

संदर्भ:
  1. राजस्थान राज्य अभिलेखागार (1890): बंजारा समाज के रीति-रिवाज (क्र. ३८९), पृ. १२ – पगड़ी रंग कोड एवं शाखा प्रतीक
  2. डॉ. बंशीलाल बंजारा (2005): बंजारा समाज: इतिहास एवं संस्कृति, राजस्थान प्रकाशन परिषद, अध्याय ७ – शाखाओं का वंशपरिचय व भौगोलिक विवरण
  3. केंद्रीय संग्रहालय, अजमेर (2018): बंजारा पगड़ी प्रदर्शनी कैटलॉग, पृ. २३-२७ – पगड़ी शैलियों का सांस्कृतिक विश्लेषण
  4. राजस्थान जनजाति अनुसंधान संस्थान (1995): राठौड़ शाखाओं का सामाजिक अध्ययन, पृ. ४५ – उपशाखाओं की संख्या एवं कार्य
  5. श्री किशन सिंह राठौड़ (मोहना शाखा प्रमुख, उदयपुर): मौखिक साक्षात्कार (2022) – शाखाओं की वर्तमान उपस्थिति व परंपराओं की पुष्टि
- राजूसिंग आडे